द ओल्ड फोर्ट:
भूतों की एक गाथा
गांव बहरामपुर!
रात के ग्यारह बज रहे थे।
बहरामपुर गांव में शार्टकट से घुसने वाले कच्चे रास्ते पर एक बाइक हिचकोले खाते आगे बढ़ रही थी।
बाइक सवार एक युवक था जिस पर फिलहाल भय प्रचुर मात्रा में सवार था। वह अन्दर से बहुत डरा सहमा था, अपने उस डर को वह लगातार मेन्टेन करने की कोशिश कर रहाथा। कुछ हद तक वह सफल भी था क्योंकि बेसिकली या फिर कहो कि दिन के उजाले में वह भूतों को नहीं मानता था। ये विषय उसे कपोल कल्पित सा नजर आता था। या फिर कहो कि वह भूत का विरोध करने वाले खेमे की तरफ अपना झुकाव रखता था।
लेकिन रात के अंधेरे से सामान्यता डरता भी था। और फिलहाल तो वह बाइक लिए ऐसे रास्ते से गुजर रहा था जिससे रात तो रात लोग दिन तक में गुजरना पसन्द नहीं करते थे। फिर भी एक बार को दिन में गुजरा जा सकता था। कदाचित लोग दिन में गुजर जाया करते थे लेकिन रात...
ऐसा तो सोचना भी अनर्थ था।
इस कच्चे रास्ते पर एक बहुत पुराना किला पड़ता था, जो भूतों को लेकर ऐसे ही बदनाम था जैसे ताजमहल अपनी सुंदरता को लेकर प्रसिद्ध है। दूर दूर तक।
कम से कम किले के पचास-पचास कोस दूर तक तो लोग यहाँ से रात को न गुजरने की कसमें खाते थे-
क्योंकि इस किले के भूतों का खूनी संहार प्रसिद्ध रहा है। मानो रात की नीरवता भंग करने वाला इन भूतों को स्वीकार्य ही न हो। ये चाहते ही नहीं थे कि कोई यहाँ से रात में गुजर कर अपने पदचापों से इन भूतों की तन्द्रा भंग कर दे और इनकी भृकुटी तन जाये।
एक बार भूतों की भृकुटी तन गयी, तो इसका जिम्मेदार व्यक्ति जीवित नहीं बच सकता।
बाइक की धुक-धुक बहुत दूर तक सन्नाटे को भंग करती चली जा रही थी। कहा जा सकता है कि इस वातावरण में ये हैरतनाक मामला दर्ज हो रहा था क्योंकि यहाँ इतना कलेजा किसी का नहीं हो सकता जो इतनी रात गये... रात के ग्यारह बजे... ओल्ड फोर्ट के सामने से कोई बाइक द्वारा निकलकर जाये...?
उफ।
ये काम या तो कोई अपरिचित कर सकता है, अथवा कोई अलग दिमाग का आदमी।
कच्चे रास्ते पर धुक-धुक करती बाइक आगे बढ़ रही थी। किला करीब आता जा रहा था।
दैत्याकार किला।
बहुत लम्बा चौड़ा।
युवक खुद को मेन्टेन कर रहा था। खुद को समझा रहा था कि भूत-प्रेत नहीं होते हैं, हालांकि वह इस रास्ते पर आने के अपने फैसले को कोस भी रहा था। शार्टकट के लालच में वह इस रास्ते पर आ गया था। अब तक ऐन किले के पास पहुंच गया तो वह अपने उस फैसले को कोसने भी लगा क्योंकि डर इतना ज्यादा लग रहा था कि उसे मेन्टेन करना मुश्किल हो रहा था।
फिर...
बीच किले के सामने...
यकायक...
उसकी बाइक बंद हो गयी।
स्वतः...
उसके पसीने छूट गये। हलक खुश्क हो गया। दिल धाड़-धाड़ बजने लगा।
गलती से उसने न जाने क्यों फोर्ट की तरफ देख लिया था।
और इसी के साथ उसके हलक से हृदयविदारक चीख उबली।
वह भागा।
बाइक छोड़कर सरपट गांव की तरफ भागा।
मगर ज्यादा दूर वह नहीं भाग पाया था। एक पत्थर से ठोकर खाकर वह बुरी तरह गिरा।
ये उसकी दूसरी उबलने वाली चीख थी।
और इसी के साथ वह शान्त होता चला गया।
वातावरण में तेज सरसराहट कीआवाज उभरने लगी थी।
भूतों की एक गाथा
गांव बहरामपुर!
रात के ग्यारह बज रहे थे।
बहरामपुर गांव में शार्टकट से घुसने वाले कच्चे रास्ते पर एक बाइक हिचकोले खाते आगे बढ़ रही थी।
बाइक सवार एक युवक था जिस पर फिलहाल भय प्रचुर मात्रा में सवार था। वह अन्दर से बहुत डरा सहमा था, अपने उस डर को वह लगातार मेन्टेन करने की कोशिश कर रहाथा। कुछ हद तक वह सफल भी था क्योंकि बेसिकली या फिर कहो कि दिन के उजाले में वह भूतों को नहीं मानता था। ये विषय उसे कपोल कल्पित सा नजर आता था। या फिर कहो कि वह भूत का विरोध करने वाले खेमे की तरफ अपना झुकाव रखता था।
लेकिन रात के अंधेरे से सामान्यता डरता भी था। और फिलहाल तो वह बाइक लिए ऐसे रास्ते से गुजर रहा था जिससे रात तो रात लोग दिन तक में गुजरना पसन्द नहीं करते थे। फिर भी एक बार को दिन में गुजरा जा सकता था। कदाचित लोग दिन में गुजर जाया करते थे लेकिन रात...
ऐसा तो सोचना भी अनर्थ था।
इस कच्चे रास्ते पर एक बहुत पुराना किला पड़ता था, जो भूतों को लेकर ऐसे ही बदनाम था जैसे ताजमहल अपनी सुंदरता को लेकर प्रसिद्ध है। दूर दूर तक।
कम से कम किले के पचास-पचास कोस दूर तक तो लोग यहाँ से रात को न गुजरने की कसमें खाते थे-
क्योंकि इस किले के भूतों का खूनी संहार प्रसिद्ध रहा है। मानो रात की नीरवता भंग करने वाला इन भूतों को स्वीकार्य ही न हो। ये चाहते ही नहीं थे कि कोई यहाँ से रात में गुजर कर अपने पदचापों से इन भूतों की तन्द्रा भंग कर दे और इनकी भृकुटी तन जाये।
एक बार भूतों की भृकुटी तन गयी, तो इसका जिम्मेदार व्यक्ति जीवित नहीं बच सकता।
बाइक की धुक-धुक बहुत दूर तक सन्नाटे को भंग करती चली जा रही थी। कहा जा सकता है कि इस वातावरण में ये हैरतनाक मामला दर्ज हो रहा था क्योंकि यहाँ इतना कलेजा किसी का नहीं हो सकता जो इतनी रात गये... रात के ग्यारह बजे... ओल्ड फोर्ट के सामने से कोई बाइक द्वारा निकलकर जाये...?
उफ।
ये काम या तो कोई अपरिचित कर सकता है, अथवा कोई अलग दिमाग का आदमी।
कच्चे रास्ते पर धुक-धुक करती बाइक आगे बढ़ रही थी। किला करीब आता जा रहा था।
दैत्याकार किला।
बहुत लम्बा चौड़ा।
युवक खुद को मेन्टेन कर रहा था। खुद को समझा रहा था कि भूत-प्रेत नहीं होते हैं, हालांकि वह इस रास्ते पर आने के अपने फैसले को कोस भी रहा था। शार्टकट के लालच में वह इस रास्ते पर आ गया था। अब तक ऐन किले के पास पहुंच गया तो वह अपने उस फैसले को कोसने भी लगा क्योंकि डर इतना ज्यादा लग रहा था कि उसे मेन्टेन करना मुश्किल हो रहा था।
फिर...
बीच किले के सामने...
यकायक...
उसकी बाइक बंद हो गयी।
स्वतः...
उसके पसीने छूट गये। हलक खुश्क हो गया। दिल धाड़-धाड़ बजने लगा।
गलती से उसने न जाने क्यों फोर्ट की तरफ देख लिया था।
और इसी के साथ उसके हलक से हृदयविदारक चीख उबली।
वह भागा।
बाइक छोड़कर सरपट गांव की तरफ भागा।
मगर ज्यादा दूर वह नहीं भाग पाया था। एक पत्थर से ठोकर खाकर वह बुरी तरह गिरा।
ये उसकी दूसरी उबलने वाली चीख थी।
और इसी के साथ वह शान्त होता चला गया।
वातावरण में तेज सरसराहट कीआवाज उभरने लगी थी।
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शेष बाकी.....
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